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Saturday, December 20, 2014

" ख़्वाब तो ख़्वाब हैं ये खरीदकर न लए जाते हैं "

ख्वाबों की उम्र ही क्या है अभी
ज़रा इनकी परवरिश कीजिये
ख्वाबों को ज़रा बढ़ने दीजिये ....
"कच्ची कलियाँ न तोड़ें" पुराना मुहावरा है
आप अपने अपने ख्वाबों के साथ
ऐसी नाइंसाफी न कीजिये
अपने दिल के आँगन में
ख्वाबों को ज़रा बढ़ने दीजिये .....
परवरिश कीजिये इनकी अच्छे विचारों से
बड़े-बुजुर्गों का तजुर्बा भी लीजिये
ख्वाबों को ज़रा बढ़ने दीजिये ....

आप ही जान पाएंगे
की आपके ख्वाब कितने पके हैं अभी
क्या लड़ पाएंगे ये इस दुनिया से
और जैसे ही तजुर्बा हो जाये
फिर हौसला कीजिये
इनको खुले जहाँ में निकलने दीजिये
दुनिया से लड़ने दीजिये
ख्वाबों को हकीकत बनने दीजिये
ख्वाबों को हकीकत बनने दीजिये


" ख़्वाब तो ख़्वाब हैं 
ये खरीदकर न लए जाते हैं "

Friday, December 19, 2014

मैं भी एक घर हूँ....

मैं भी एक घर हूँ
बेहद साधारण सा
पर जैसे हर घर में होते हैं
मुझमे भी हैं
कई कमरे
एक आँगन जो सिमट गया है आजकल एक बालकनी में
उसी बालकनी में तुलसी का पौधा लगा हुआ है
जो पैदा हुआ है संस्कारों से

ड्राइंग रूम भी है
जिसमे सजा रखे है कई सारे चित्र
दीवारों पर लटकते हुए याद दिलाते हैं कुछ हसीन पल
कुछ और चित्रों के लिए दीवारों पर जगह अभी बाकी है

और है एक किचन
जहाँ हर रोज़ पकाता हूँ मैं अपना भोजन
और कभी-कभार 'ख़याली पुलाओ' भी

गुसलखाना भी है
जहाँ साफ़ कर लेता हूँ मैं अपना मैल
और चमका लेता हूँ अपने आवरण को

और सबसे ज़रूरी मेरा है एक मकान मालिक भी...